Monday, April 16, 2007

गांव विषय पर कुछ बातें

गांव विषय पर कुछ बातें करने का मन हुआ. राजीव जी की बत्ती हरी दिखी तो उन्ही को घेर लिया. यहां पेश है श्री राजीव रंजन जी से हुई चैटिंग सविस्तार.... आपको इस विषय मे यदि कुछ जोड घटाव करना हो तो आपका स्वागत है.

me: namaskaar sir
Sent at 3:36 PM on Monday


rajeevnhpc102: योगेश जी.आपकी कविताओं से जो मिट्टी की सोंधी महक उठती है...न सिर्फ अतीत हरा कर देती है वरन वर्तमान के कई जख्म कुरेद भी जाती है।बहुत ही सुन्दर भाव..बधाई।
Sent at 4:18 PM on Monday

me: dhanyavaad sir
Sent at 4:27 PM on Monday

me: पता नहीं क्यों मुझे लगता है कि गांव का आदमी बहुत भला था. हम शहर के होकर खराब होते जा रहे हैं?
Sent at 4:44 PM on Monday


rajeevnhpc102: सादापन था..आज की तरह की चालाकी नहीं थी..
Sent at 5:05 PM on Monday


me: आदमी आदमी को आदमी समझता था गांव मे. पूरे गांव मे रिश्ते होते थे. मैं अपने गांव मे अपने से दुगनी उम्र के लोगों का बाबा लगता हूं जब वह मुझे बाबा राम राम कहते थे बडा अजीब लगता था अब सोचता हूं क्या संस्कार था वो?
Sent at 5:08 PM on Monday


rajeevnhpc102: जी सच है..और जिस तरह से आप अपनी व्यथा लिख रहे हैं वह सराहनीय है..
Sent at 5:11 PM on Monday


me: हम विज्ञान की दुहाई देते नहीं थकते पर आप जरा अतीत में झांकियेगा पाएंगे कि तब का ग्रामीण हमसे ज्यादा वैज्ञानिक था. संसाधनों का, जिस मित्तव्य्यीता के साथ वह उपयोग करता था वह काबिले तारीफ है. एक गांधीयन हुए है श्री धर्मपाल जी उन्होंने अपनी पुस्तक में लिखा कि एक गांव में एक बार कोई व्यक्ति शहर से आ गया उसने कहा कि सबमर्शिबल लगा कर कुवे से पानी निकालने मे मदद मिलेगी. गांव के बुजुर्गों ने इस प्रस्ताव का विरोध किया. गांव वालों का तर्क दिखिये उन्होंने कहा कि इस यंत्र के उपयोग से पानी जाया जाएगा. अब आदमी नहाने के लिये एक बाल्टी पानी निकाल कर नहाने का काम चला लेता है पर यह मशीन चलते ही कई बाल्टी पानी व्यर्थ कर देगी. सोचिये कितना मजबूत तर्क था. हम लाख कहें कि एच टू अओ पाने होता है पर हाईड्रोजन, और आक्सीजन मिलाकर यदि विज्ञान पानी बना लेता तो आगामी विश्वयुध पानी को लेकर होगा जैसी बात नहीं खडी होती...
Sent at 5:24 PM on Monday

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